गुरु वंदना

    || कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ||

    बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
    महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥

    भावार्थ:- मैं उन गुरु महाराज के चरण कमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महांमोह (तृष्णा) रूपी घने अंधकार के नाश के लिए सूर्य किरणों के समूह है।  = मोह सकल व्याधिन कर मूला।